कुंडली में दोष
ग्रहों कि दिशा और दशा के आधार पर कुंडली आपका भविष्य बताती है। कुंडली में ग्रहों की दशा, दिशा और उसकी स्थिति कुंडली शुभ और अशुभ योग बनाती है। जो अशुभ योग होते हैं उन्हें दोष कहते हैं। जैसे काल सर्प दोष, नाड़ी दोष, पितृदोष, श्रापित दोष, मंगल दोष आदि अनेक प्रकार के दोष कुंडली में देखे जाते हैं।
कुंडली में दोष बनने का कारण ग्रहों की नकारात्मक स्थिति होती है। जब कोई ग्रह नीच भाव में हो या फिर आपके लग्न और राशि को पाप ग्रह सीधे देख रहे हों तो ऐसी स्थिति कुंडली में दोष उत्पन्न करती हैं। ऐसी मान्यता भी है यह दोष इस जन्म के साथ-साथ पूर्व जन्म से भी जुड़े हो सकते हैं।
Kundali Dosh
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कैसे बनते हैं कुंडली में दोष?
कुंडली में दोष बनने का कारण ग्रहों की नकारात्मक स्थिति होती है। जब कोई ग्रह नीच भाव में हो या फिर आपके लग्न, राशि को पाप ग्रह सीधे देख रहे हों तो इस प्रकार की स्थितियां कुंडली में दोष उत्पन्न करती हैं। मान्यतानुसार यह दोष इस जन्म के साथ-साथ पूर्व जन्म से भी जुड़े हो सकते हैं। जब जातक की कुंडली में कोई दोष उत्पन्न हो रहा हो तो उक्त अवस्था में संबंधित ग्रह के शुभ फल मिलने की बजाय वह ग्रह नेगेटिव परिणाम देने लगता है।
कुंडली में दोष का समय कितना होता है?
यह कुंडली में बन रहे दोष की स्थिति पर निर्भर करता है। यह दोष अल्पकाल के लिये भी बन सकते हैं और दीर्घकाल के लिये भी। जो दोष जातक की जन्मकुंडली में बनते हैं यदि उनका उपाय न किया जाये तो ज्योतिषशास्त्र की मान्यताओं के अनुसार जातक के जीवन पर इन दोषों का प्रभाव दीर्घकाल तक बना रहता है। मसलन मांगलिक दोष से मुक्ति पाने के लिये जातक को किसी मांगलिक से ही विवाह करना पड़ता है या फिर अन्य ज्योतिषीय उपाय करने पड़ते हैं। इसी प्रकार कालसर्प दोष से मुक्ति भी तभी मिलती है जब इस दोष का उपाय कर लिया जाये। इसी प्रकार यदि शनि से संबंधित दोष है तो इसकी अवधि भी लंबी होती है। साढ़े सात साल तक तो शनि की साढ़े साती प्रभावित करती है। जन्म के समय यदि कुंडली के किसी भाव में कोई ग्रह नीच अवस्था में है तो उस ग्रह का उस भाव में शुभ फल मिलता। श्रापित दोष किसी भी जातक की कुंडली में राहु और शनि की युति होने से बनता है। मान्यता है कि यह दोष जातक के पूर्वजन्मों के फल से बनता है।